रघु हर सुबह की तरह जल्दी उठकर रसोई में पहुंचा था, लेकिन आज कुछ अलग था। उसकी मालकिन, सौम्या जी, हल्के गुलाबी रंग की साड़ी में बालों को खोले रोटियां बेल रही थीं। साड़ी का पल्लू बार-बार कंधे से सरक रहा था, और हर बार वो उसे बेपरवाही से ठीक कर रही थीं। रघु की नज़रें खुद-ब-खुद खिंचती चली गईं। वो कोई आम नौकर नहीं था – तीन साल से इस हवेली में था और हर दिन सौम्या को देखकर उसकी चाहत और गहराती जा रही थी।